प्यारी


एक कविता उन दिनों को याद करते हुए जब हमारा देश सोने की चिड़िया कहा जाता था |

HINDI POEM ON HOW INDIA WAS ONCE RICH AND PROSPEROUS & HOW ITS PROSPERITY WAS ENSLAVED BY THE BRITISH & THEN FREED BY THE INDIANS & ITS STATE TODAY

सोने के पर जिसके ऐसा थी चिड़िया हमारी ,
कंधार से लेके कन्याकुमारी तक उड़ती थी प्यारी |

घोरी और ग़ज़नवी भी करपाए थे इसको कैद नहीं, 
उसकी सुनहरी चमक से होते थे रौशन सभी |

अंग्रेज़ो की गुलामी का भी डट कर किया सामना ,
पर लोहे के यंत्रो के सामने पड़ा इसको हारना |

गुलामी की बेड़ियाँ डाले कैद रही सालो साल ,
अन्धकार में भूखे मरे उसके लाखो लाल |

हर दिल को सन्न कर जाती थी प्यारी की ये पीड़ा 
भगत, चंद्रशेखर और गाँधी ने उठाया आज़ादी का बीड़ा |

इनकी एक पुकार पे लड़ पड़ा हर एक देशवासी ,
आज़ादी का स्वाद चखने निकल पड़ा हर सन्यासी |

तानाशाहों की कैद से प्यारी को था छुड़ाना ,
आज़ादी की हवा में था उसको उड़ाना |

लड़ गया हर लाल जब प्यारी को आज़ाद होना ही था ,
पर नासूर मिलेगा प्यारी को ऐसा किसी ने सोचा ना था |

ताकत के कुछ परवानो ने देश को ही तोड़ दिया ,
बटवारे की आग ने प्यारी को और भी झिझोर दिया |

सालो साल थी कैद जो झट पट उड़ती वो कैसे ,
खो चुकी सुनहरी चमक जो वापस पाती वो कैसे |

चमक उसकी कम पड़ी, आँखों में हमारे फिर भी नमी न थी ,
रौनक उसकी लूटने वालो की अपनो में भी कमी न थी |

साल बीते देसी नेता आए अनेक ,
प्यारी के इलाज को लेप वो लाए अनेक |

लेप थे बर्बाद सारे प्यारी पे असर एक ना डाले ,
पर लेप बनाने की मशक्कत में भर गए सबके काले पिटारे |

गैरो ने लूटा बहुत अपनो ने भी बक्शा नही ,
इस दरिंदगी के गुनहगार है सारे सभी |

ये सिलसिला यू ही कायम है, प्यारी अब भी घायल है ,
उसके नन्हे पैरो में पड़ी अब भी बेड़ियों की पायल है |
 
(c) UMANG

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