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Showing posts from October, 2017

सौदा

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शर्म है इस बात की के आज इस बात की बात करेंगे खोलेंगे कुछ राज़ उनके कुछ दर्द अपना भी बयाँ करेंगे प्यार मोहब्बत की नहीं ये बातें है उनसे बड़ी खुली है हम किताब बने फिर भी लोग हमे समझे नहीं बुरे है हम या गलत हमारा अंदाज है कोई इतना हमे बतलादे पहन लेंगे नकाब भी जिससे उम्र भर हम दूर है भागे सच्चा हू , शायद है ये बात तुम को रास नहीं आती पन्नो की है चमक ये , न जाने तुमको ये क्यों खल जाती जुबां मेरी है चाशनी सी मीठी नहीं माना अलफ़ाज़ कुछ कडवे इनमे है तेरी खातिर पाक भी दू इनको गुड मे तू कह तो सही कमी ये मुझमे है अल्लहड़ इस जवानी में जवां अब भी मेरा बचपन मुझमे है तन्हा हू इतना की , नज़दीक ये दोस्त मेरा सबसे है तन्हा इस दुनिया ने जब जब मुझको छोड़ा है हर बार मेरे दोस्त ने मेरे , साथ बैठ मुझे बटोरा है यार ये मेरा इतना साला खुदगर्ज़ क्यों है तेरी खातिर हमसे बिछुड़ना भी इसे मजूर क्यों है सौदे में ये

सत्ता की खातिर

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कुछ समझ नहीं आता ये किस मोड़ पे हम आगाये एक तरफ है भक्त और दूसरी और मार्क्स के दीवाने आभास ये हमको हुआ की चुनाव की है हमको आजादी दिल तो साला तब टूटा जब दिखी हमको सब बेईमानी भक्ति की भक्ति समाज था हमको सिखाता मार्क्स से यारी करने को शिक्षक था उकसाता दबाव था बहुत, अठारवी सालगिरह थी द्वारे खड़ी निर्णय हमारा सुनने को ईवीएम थी बेताब बड़ी हलचल थी दिल मे मची, कतार में थे जब खडे निर्णय तो करलिये , एक आखरी बार विचार में पडे हसिया दूर फ़ेंक कमल था हमने उठाया नीला एक बटन दबा कर निर्णय अपना खुद को सुनाया आसान लगी प्रक्रिया हमको, बे मतलब थे परेशान हुए असली खेल हुआ तब शुरू , जब अधिकारी थे गिनती में लगे कमल का जो परचम लहराया निर्णय को हमारे मोहर लगाया उत्साह था इतना , मनो हमको था किसी ने मंत्री बनाया बात को ये कुछ साल हुए है , हम भी कुछ जवान हुए है बचपान पीछे छोड़ , समझदारी में छलांग लिए है भक्त