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हिंदी शायरी

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ज़िन्दगी के तीन एहम पहलुओ पे मेरे द्वारा लिखे गए चंद शब्द, उम्मीद करता हु आपको पसंद आएंगे | बचपन छूट गया वो सब जो हमारा अपना था , वो वक़्त नहीं एक सुन्हेरा सपना था | जब सुकून की नींद खुली छत पे भी आती थी, बीत गया वो पल जब नाम हमारा बच्चा था | मोहब्बत माथे पे तेरे शिकन भी मुझको खलती है , देख तेरी ढलती उम्र, साँसे मेरी थमती है | मोहब्बत किसी और से क्या करू मै माँ, दिल मेरा मुझमे, पर धड़कन तुझमे बस्ती है | ज़िन्दगी  बयाँ इसको कर पाना आसान नहीं है, दिल है धडकता पर जिंदा नहीं है | बहती जाए दरिया में कश्ती जो , नाम उस कश्ती का ज़िन्दगी नहीं है | -उमंग 

खलिश

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साटन के पर्दे पडे , फर्श लगती कांच की बनी | देओदार के पलंग बने,रेशमी उनपे चादर चढ़ी | मनोरंजन के साधन बडे,मेहेंगे कपड़ो से अलमारी लदी| हालातो से डट कर लडे, सब रिश्तों की कुर्बानी लगी | माँ बाप पीछे छूटे , आसान थी ये राह नहीं | अनेक प्रयत्न जब हम करे , हुई तब ये कोठी खड़ी | हर गली थे कोठी के चर्चे , उस ग़ाव थी वो इमारत नयी | सीना ताने हम चले , ऊची और हमारी नाक हुई | लड्डू मन भीतर फूटे , सोचा पाए हम मुकाम सभी | गाँव बसे कुछ सेठ नए , हुई और कोठियां खड़ी | चर्चे जब उनके बढे , दिल मे एक खलिश जगी | गाँव के जब वो मुखिया बने , साख तब हमारी घटी | जोर लगा कर हम भिडे , हार थी स्वीकार नहीं | सब शास्त्र हमारे लगे, खूब लम्बी वो जंग चली | पानी भाति रुपये बहे , पर परिणाम में हमे जीत मिली | गाँव छोड़ जब वे भागे, राहत भरी तब सांस ली | सुकून के कुछ पल मिले , चाहत आखिर पूरी हुई | दिल में फिर कुछ दर्द उठे , वो खलिश थी जिंदा अभी | छोडे काम काज सारे , बेचैनी जब हमारी बढ़ी | ज़िन्दगी के पन्ने पलटे , पढनी पूरी किताब पड़ी | अधबीच आकर रुके , चुभती आ